आषाढ़ का महीना हो या बाढ़ का पानी जरूरी नहीं कि नानी मरे? कई बार उल्टी चीजों
से सीधा फायदा होता है। जैसे कि यदि सड़क में गड्ढे न हों तो एक्सीडेंट खूब
होते है और यदि हों तो वाहन चींटी की चाल से चलते हैं कि एक्सीडेंट क्या उसका
बाप भी नहीं हो सकता। गड्ढे वाली सड़कें सरकारी अस्पतालों के नामकमाऊ नुमाइंदा
की बड़ी हितैषी होती हैं जो जचकी अस्पताल की ड्योढ़ी पर होने वाली थी। वह सड़क पर
ही हो जाती है!
इस बार झमाझम बारिश हो रही है, कई इलाकों में औसत से ज्यादा हो चुकी है, यदि
नहीं हुई होती तो इसकी कमी के विश्लेषण हो रहे होते और ज्यादा हो रही है तो
इतनी कब पहले हुई थी आदि पर विश्लेषण हो रहे है! अबकी बार भोपाल में फिर बाढ़
की स्थिति बनी फिर इसलिए कह रहा हूँ कि 2006 की बाढ़ का भी मैं साक्षी था और इस
बार का तो कुछ ज्यादा ही साक्षी हो गया हूँ।
हुआ ये कि नौ जुलाई 2016 को रात भर बारिश होती रही और इसका नतीजा यह हुआ कि
हमारी कालोनी के पच्चीस में से बीस मकान भी जल प्लावित हो गए! अभी तक हम लोगों
ने इतने सालों में केवल अखबारों और टीवी चैनलों में डूबे हुए मकान व उनके
सहायता के लिए आवाज लगाते आबाल-बाल वृद्ध, नारी देखे थे। और यह भी सुना था कि
कैसे डूबते हुए पड़ोसी पत्नी की जगह खूबसूरत पड़ोसन का हाथ थाम रहे थे! और पड़ोसन
बाँके जवान पड़ोसी को न जाने कैसे अपना पति मान कर बाढ़ से बचने की जुगत में
लिपट गई थी। क्षण भर के लिए तो बाढ़ का प्रकोप थमा सा लगा था दोनों को! लेकिन
अबकी यहाँ हमारे सामने ही पूरा सीन क्रियेट हो गया और सब एक ही जगह पर हो रहा
था रामोजी फिल्म सिटी की तरह की बाढ़ सिटी बन गई थी? कही और किसी कथानक या
उप-कथानक के लिए जाने की जरूरत नहीं थी! इत्ते सालों में इत्ते शहरों व
प्रांतों के जो जलजले अखबारों में पढ़े व टीवी में देखे थे सबसे एक साथ ही
साक्षात्कार हो गया।
बाढ़ का पानी सर्प की तरह लेकिन बिन फुफकार के रात्रि को चुपके से आया था। पता
ही नहीं चला जैसे यदि कितना भी विषैला सर्प हो वह आकर चुपचाप कही अंदर बैठ जाए
तो वह तब तक खतरा नहीं है जब तक कि कोई उसे देख न लें! और यही इस कालोनी में
हुआ कि पानी जब पलंग के स्तर से ऊपर को आने लगा, तब लोगों की नींद खुली। उसके
पहले तो घोड़े कुत्ते बिल्ली सब बेचकर लोग सो रहे थे और पानी धीरे-धीरे सरकता
हुआ आया और फिर कुंडली मारकर ऐसा बैठा कि लगा कि कही यह आज डस कर ही उतरेगा।
सारे बीस मकानों में अफरा-तफरी मच गई। केवल पीछे के तीन-चार मकान जो थोड़ा
ऊँचाई पर थे, वहाँ के रहवासी इस समय अपने को बाकियों से ऊँचा समझ रहे थे और वो
पानी की इस दीवार को देखने के लिए अपनी छत की दीवार पर जा चढ़े थे।
हमारे एक दाईं ओर के पड़ोसी जो कि बाएँ हाथ से ही सारे काम करते थे। के घर में
पानी के साथ ही करंट भी फैल गया था। बाढ़ का यही तो फायदा है कि वह आती तो कई
सालों में एक बार है। लेकिन उसकी चर्चा हम साल भर कर सकते हैं और इससे अच्छा
टाईम और किसी तरह से नहीं पास हो सकता! अब हम जब बोर होते हैं तो वो नौ जुलाई
2016 के जलजले की बात शुरू कर देते हैं। आजकल के तो सास-बहू के सीरियल भी इतने
दमदार नहीं रह गए हैं? जितने कि पहले वाले थे कि महिलाओं को घर की डेहरी
लाँघने ही नहीं देते थे। यह काम अब कि हमारे यहाँ की बाढ़ ने किया अब कोई दिन
ऐसा नहीं जाता जब इसकी चर्चा न होती हो। अगले तीन महीने तो गप्पें लड़ाने का एक
अच्छा मुद्दा मिल गया है! कालोनी का बच्चा हो या बूढ़ा इसी पर बात करता है।
वैसे ये गप्पें सच्ची घटना पर आधारित है! पहले जहाँ चर्चा होती थी कि स्कूल
वाले फीस बढ़ाते जा रहे हैं या भाभी जी का कल का एपीसोड बड़ा मजेदार था या कपिल
ने कल भी हँसा-हँसा कर लोटपोट कर दिया या महँगाई कितनी बढ़ती जा रही है अब
चर्चा होती है आपके यहाँ क्या-क्या नुकसान हुआ, आपको कब पता चला कि पानी आ गया
है। आपके यहाँ कितने फीट कहाँ-कहाँ भरा? तो कोई कहता कि हमारे हनीमून तक के
फोटो बाढ़ ने निगल लिए। तो कोई कहता कि कार में पानी भरने से हुए नुकसान के
कारण तीस हजार लग गए। कई पड़ोसी जो कि आपस में कभी बात नहीं करते थे। बाढ़ के
कारण आपस में घुल मिल गए थे। सोचें कि बाढ़ ने अपने तुच्छ नुकसान की तुलना में
कितना महान फायदा किया था।
हमारे पड़ोसी तिवारी जी बाढ़ की उतार के चार दिन बाद मिल गए, हाँ जहाँ पचीस पचास
मकान हों और तिवारी, शर्मा, सिंह, श्रीवास्तव आदि सरनेम के पड़ोसी न हो, ही
नहीं सकता! बोले यार आपके यहाँ नुकसान नहीं हुआ क्या? हमारे यहाँ तो न जाने
कितने का हो गया? हमें उनकी बात सुनकर लगा कि जले में नमक छिड़क रहे हैं, और बस
यहीं से वह पंडोराज बाक्स खुल गया और हम दोनों अपनी-अपनी नुकसानी के विवरण के
चौके व छक्के मारने लगे। बल्कि मैंने तो इतना लंबा छक्का कभी देखा-सुना नहीं।
मैं तो सोचता हूँ कि अच्छा मौका है क्रिकेट में भी अट्ठा का अविष्कार करने का
समय आ गया है! जब तिवारी ने कहा कि मेरा दरवाजा बंद था। मैं पानी को रोके था
और लेकिन वो थोड़ी देर बाद खिड़की से झाँकने लगा! लेकिन मैंने कहा बेटा मैं किसी
तांत्रिक से कम नहीं हूँ! देखता हूँ कि तू कैसे अंदर आता है। बाँध कर रख दूँगा
और उन्होंने दरवाजे की नीचे की संध को और कसकर पैक कर दिया! और थोड़ी देर के
लिए तिवारी जी अंदर गए और पानी की दीवार को बस यहीं गुस्सा आ गया, उसका क्रोध
फूट पड़ा तो क्या होना था? पानी की दीवार उनकी खिड़की से आ गई अंदर सारा तहस
नहस। अब कोई उपाय बचा नहीं तो वे तो छत पर जा चढ़े। उसी समय दिल्ली भोपाल की
उड़ान का हवाई जहाज भोपाल में लैंड करने के लिए उन्हें आसमान में दिखा तो वे
समझे कि सरकार कितनी मुस्तैद है, वे छत पर चढ़े नहीं कि सहायता के लिए हवाई
जहाज मँडराने लगा! उनहोंने हाथ हिलाना शुरू कर दिया और जोर-जोर से आवाज लगाने
लगे कि अभी तो पर्याप्त राशन घर में है। कोटिषः धन्यवाद उस मेड को जिसके
बीपीएल कार्ड के उपयोग का हमें थी पावन मौका मिल जाता है। आप कहीं और देख ले।
आश्चर्य कि उनकी बात शायद पायलट ने भी सुन ली। वैसे भी पायलट बहुत समझदार होते
हैं। वे क्या कई हैंडल व बटन छोड़कर प्लेन चला लेते हैं, और साथ ही साथ
एयरहोस्टेस से हँसी-मजाक भी करते जाते हैं। सेल्फी भी लेते रहते हैं और सौंफी
भी। हवाई जहाज आगे बढ़ गया।
मैंने शेखी बघारते हुए कहा कि मेरे यहाँ तो खैर खिड़की तक आने की जुर्रत नहीं
कर पाया पानी?
तिवारी बोला, इसके लिए मुझे धन्यवाद दीजिए।
मैंने कहा, कैसे?
बोला, श्रीमन रात को मेरे मकान व उससे लगे दो और मकानों की पिछवाड़े की दीवार
टूट गई और पानी आपके अगवाड़े, जो कि खिड़की से चढ़कर आपको मुँह चिढ़ाने आया था!
तेजी से बाहर को निकलना शुरू हो गया!
मैंने कहा, तिवारी जी ये तो पता नहीं था मुझे, जो आपने यह उपकार किया मैं उसे
जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा। भले ही, मैं नोटबंदी का सरकार का उपकार भूल जाऊँ!
तिवारी बोला ठीक है, मेरे से ज्यादा आपको निर्माण विभाग का आभारी होना चाहिए?
इनके विनाश में भी कभी-कभी निर्माण छिपा रहता है। घटिया काम कभी-कभी
जीवनदायिनी होता है! यह मुझे उस कत्ल की रात को पता चला! यह दीवार जब से बनी
थी, तब से ही इसमें क्रेक थे। मैं ठेकेदार व इंजीनियर को कह-कहकर थक गया। वो
कहते कि ये तकनीकी क्रेक है। इससे दीवार कमजोर नहीं होती है? जब पीसा की मीनार
इतनी शताब्दियों में नहीं गिरी, तो ये कहाँ से गिर जाएगी! फिर चार माह बाद ही
दीवार पीसा की मीनार की तरह एक ओर को झुक गई और हर दो माह में थोड़ा-थोड़ा झुक
जाती, हम तो गद्गद हो गए। हमने स्थानीय कुछ अखबारों में व्हाट्सएप से फोटू
भेजकर इसका प्रचार-प्रसार कर दिया। कालोनी के लोग व आस-पास के लोग इसको देखने
आने लगे, और यह हर माह एक निश्चित एंगल से थोड़ा और झुक जाए। अब हम तो हमारी इस
दीवार रूपी मीनार पर टिकट रखने की सोचने लगे। लेकिन विभाग वाले बोले कि साहब
यह सरकारी मकान है यदि रखोगे भी तो ये सरकार के खजाने में जाएगा? तो हमने ये
सोचकर कि एक आइडिया जिंदगी नहीं बदल सकता, इसे त्याग दिया।
हमारे सामने नगर निगम के एक उपायुक्त खन्ना रहते हैं, जो कि शहर के बाढ़ राहत
आपदा सेल के इंचार्ज हैं। उन्हें कालसेंटर से फोन आया कि सर झट आ जाइए? पूरे
शहर में बाढ़ की स्थिति है? खन्ना बोला, लेकिन यार मैं तो बालों में मेंहदी
लगाकर बैठा हूँ। कनिष्ठ अपने इस वरिष्ठ के काईंयापन से अच्छे से परिचित था।
बोला कि सर, स्थिति से निपटने के लिए आपके जैसे जुझारू अधिकारी की ही नितांत
आवश्कता है? वैसे उनका कनिष्ठ इस तरह से उनकी तारीफ के पुल बाँध कर छोटे से
पुल पुलिया में पानी ऊपर बहने पर भी उन्हें बुला लिया करता था। और अपने
मातहतों को कहता था कि अकेले उसी ने समय बेसमय दौड़ लगाने का ठेका ले रखा है
क्या? खन्ना साहब क्या कर रहे हैं घर में। फिर मन में कहता कि पचास सौ बची
जुल्फों में मेंहदी लगाकर बैठे होंगे!
खन्ना बोला कि कैसे आ जाऊँ आगे पानी, पीछे पानी, दाएँ पानी, बाएँ पानी। तीन
फीट पानी की दीवार दसों दिशाओं से रास्ता रोके खड़ी है। उनका एक कर्मचारी था,
गंगू वह चलता पुर्जा था। उसने फोन हाथ में ले लिया और बोला सर हीरो बन जाएँ।
इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा? मैं दो चैनल वालों को लेकर आ रहा हूँ। उसने चंद
और लच्छेदार बातें कही, कि खन्ना साहब को बात जँच गई। बस खन्ना साहब अब तैयारी
में थे, नगर निगम की बोट इस पानी की दीवार पर उतारी गई और खन्ना के घर तक आई।
दो चैनल वाले बोट में सवार थे। वैसे वे बुरी तरह घबराए हुए थे, लेकिन फिर भी
वे देखना चाह रहे थे कि बाढ़ आपदा के आला अधिकारी कैसे इसमें फँसते है? आपदा
में भी खन्ना साहब का जज्बा देखने लायक था। उन्होंने महँगा गॉगल लगाया हुआ था,
सिर पर हैट थी और बस मुँह में एक सिगार की कमी झलक रही थी। लेकिन ऐसे मौके पर
यह करते तो गड़बड़ हो सकता था, यही चैनल वाले उल्टी न्यूज चलाना शुरू कर देते।
तो दूसरे दिन के अखबार में खन्ना साहब पूरे शहर के हीरो थे कि अपने बाल बच्चों
की, बूढ़ी माँ की, घर की सेवा में बटोरी गई कीमती चीजों के खराब होने की परवाह
न करते हुए, कर्तव्य की बलिवेदी पर अपने को न्यौछावर करने, तीन फीट पानी घर
में भरा होने के बावजूद, बोट से शहर में बाढ़ का जायजा लेने, लोगों को राहत
पहुँचाने के लिए निकल गए। ऐसे जांबाज को सलाम!
बाढ़ से एक ये फायदा हमें हुआ कि कोई कैसे हीरो बन सकता है। यह पड़ोस में ही
देखने को मिल गया। वैसे असली हीरो तो वो युवा था जिसने चौदह लोगों की जान बचाई
थी और फिर एक बुढ़िया की अपना सामान वापिस निकालने की जिद में अपने को न्यौछावर
कर दिया। वह कुँवारा ही इस दुनिया से रुखसत हो गया। उसे सबने भुला दिया।
हमारा किचन पानी में डूब कर बरबादी का हमाम बन गया। माह भर पहले ही पत्नी
प्याज के भाव के आसमान छूने के डर से एक बोरी प्याज ले आई थी। क्योंकि प्याज
में एक खास गुण होता है कि ये दो बार रुलाती है। एक खरीदते समय दूसरा छीलते
समय! और ये नीचे ही पड़ी थी। पानी पाकर ये इतराने लगी। ऐसे तैर रही थी जैसे कि
कभी स्नान नहीं किया हो, तो अपनी वो हसरत किसी नटखट बच्चों की टोली जैसा
बरसाती पानी में पूरा करना चाह रही थी! एक को पकड़ो तो चार दूर चली जाए, फिर
हमने यह खेल छोड़ दिया कि क्या बेवकूफी कर रहे हैं। प्याज बिना छीले ही आँसू
निकाल सकती है ये इस समय हमने महसूस किया। अब प्याज कोई इतनी महँगी चीज तो है
नहीं? सरकारी गोदाम में ही चार रुपये से कम में मिल रही है? टनों सड़ गई किसी
का कुछ नहीं हुआ।
हमसे दो घर छोड़कर एक वैज्ञानिक रहते हैं। उनको प्रयोग व शोध का अच्छा काम मिल
गया था। जब ये पानी उनके यहाँ भी धीरे-धीरे भर रहा था, तो वे बार-बार आगे पीछे
होकर यह उपाय सोच रहे थे कि यह आ कहाँ से आ रहा था और बाहर जाएगा कैसे? लेकिन
वे सोचते रहे और पानी पहली मंजिल से दूसरी पर उनको ढकेल ले गया। लेकिन वहाँ भी
उन्होंने अपनी खोजी प्रवृत्ति को विराम नहीं दिया और नतीजा यह रहा कि जो सामान
वो हटा सकते थे। वो भी पानी की भेंट उनकी प्रयोगवादिता के कारण चढ़ गया। फिर
बाद में पता चला कि जब पानी उतर गया तो वे उन आइटमों को सुखाने की वैज्ञानिक
विधि की खोज में फिर लग गए।
हमारे से तीन मकान छोड़कर एक इंजीनियर रहते हैं। जब उनके घर में पानी भर रहा था
तो उनका अभी तक की नौकरी का अनुभव काम आया! उन्होंने तुरंत अपनी कार कैसे भी
करके बाहर निकाल ली और उसमें आधी रात को ही छू मंतर हो गए। जब उनसे पूछा गया
कि घर खुला छोड़कर ही आप निकल लिए? तो बोले कि मुझे मालूम है कि ठेकेदार कैसे
काम करता है। कब घर की छत व दीवार भरभराकर हमें व हमारी प्रिय पत्नी लीला को
लील जाती। इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता?
यार, शर्मा जी, हमने कहा कि लेकिन यह चीज हम लोगों को भी तो बताना था? कम से
कम हम लोग भी समय पर नौ दो ग्यारह हो लिए होते! वे बोले यार ये सीक्रेट है
विभाग के लोग नाराज होते! सॉरी श्रीवास्तव बारदर!
अब हमारी इस कालोनी में महँगाई पर बात नहीं होती है! बूचड़खाने की जगह के विवाद
पर, स्मार्ट सिटी पर, मेडों की लेटलटीफी पर, कश्मीर की स्थिति पर, डोकलाम पर
नोटबंदी व जीएसटी तक पर बात करना लोगों को नहीं भाता, भाता है केवल बाढ़ पर
मुँह चलाना। अपनी-अपनी स्थिति को विकटतम बता उसका बखान करना!
यहाँ बाढ़ से बौद्विक चिंतन की बाढ़ आ गई है।